Monday 18 January 2016

साकरात

साक्रात पर्व मुख्यतः दक्षिण छोटानागपुर क्षेत्रों और बंगाल और ओडिशा में मनाया जाता है। साक्रात पर्व हिन्दुओं धर्मावलम्बी द्वारा मनाये जाने वाले पर्व से अलग है. यह संथालों का कैलेंडर के हिसाब से मनाया है। यह मुख्यतः दो दिन मनाया जाता है। यह पर्व भी उसी दिन आस पास मनाया जाता है जिस दिन हिन्दुओं धर्म मानने वाले मकर सक्रांति मनाया जाता है। 

साक्रात पर्व को साधारणतः नया साल के शुरुआत  अच्छे से होने के लिए मनाया जाता है। उस दिन घर को साफ़ सुथरा किया जाता है। और पुरे घर के फर्श को गोबर से लीपा जाता है।संथालों में गोबर को पवित्र माना जाता है। कोई भी पर्व या पवित्र समारोह में गोबर का प्रयोग किया जाता है। घर साफ़ सुथरा करने के बाद बोंगा किया जाता है। बोंगा में हांडी "राइस बेयर " का प्रयोग किया जाता है।
उसके बाद भोजन की तैयारी किया जाता है। इस अवसर में गुड़ पीठा, जिल पीठा , रोहोड़ दाका जिल उत्तु,नारकल और तिलमिंग पीठा बनाया जाता है।ये सारी रेसिपी मिट्टी की बर्तन में बनाया जाता है।और जो भी रेसिपी  पकाया जाता है उसे पत्तों से बनाया हुआ पत्तों की थाली जिसे "पातड़ा " कहा जाता है में खाया जाता है। और पत्तों से बना हुआ कटोरी जिसे "फुडुग " कहा जाता है। उसमें सब्ज़ी परोसा  जाता है। यह एक तरह का रस्म है जिसे दो दिन तक मनाया जाता है।
उसके बाद पुरे परिवार के साथ भोजन किया जाता है।भोजन करने के बाद सरसों तेल को  हाथ पैर में मला जाता है। ताकि साक्रात बूढ़ी सबों को आशीर्वाद दें।    
इस अवसर में घर आने वाले  मेहमानों को हंडिया पिलाया जाता है। उसके साथ घर में बनाया हुआ जिल पीठा और खजड़ी दिया जाता है। 
साक्रात के दूसरे दिन मुर्गे का बलि साक्रात बूढ़ी को दिया जाता है। ताकि पुरे साल अच्छा से गुजरे। और दूसरे दिन बूढ़ी गांडी नाच के साथ घर घर जा कर चावल और खेजड़ी इक्क्ठा किया जाता है।इस नाच में पुरुष या बच्चे बंदर के वेश में आते है और पुरे गाँव में नाच दिखाते हैं और हंडिया पीकर हर्षोउल्लास के साथ पर्व को मनाया जाता है।