Wednesday 20 November 2019

आखिर क्या किया जाए

कभी कभी समझ नहीं आता की रिलेशनशिप को हैंडल कैसे किया जाये। किसी रिलेशनशिप को जिन्दा रखने के लिए कितने मेहनत और समय लगते है। कभी कभी तो रिश्ता नासूर बन जाता है। समझ में नहीं आता है की इसे  जिन्दा कैसे रखा जाये। लेकिन फसाद का जड़ कम्युनिकेशन का गैप होने के कारण होता है।  बहुत कोई जो हमारे दोस्त और रिश्तेदार होते हैं वे समझाते हैं की रिश्ता को बनाये रखने के लिए कम्युनिकेशन ही एक मात्र उपाय है। ज्यादातर रिश्ते इसीलिए टूट जाते हैं क्योंकि दो लोग आपस में ढंग से बातचीत नहीं कर पाते हैं। वो सोचते हैं की आपस में बात करने से अच्छा कोई दूसरा ढूंढ लिया जाये।  लेकिन जो रिलेशनशिप को झेल रहा होता है तो उसे समझ नहीं आता है की रिलेशनशिप को जिन्दा रखा कैसे जाये?

अब समझा जाये की कोई भी रिश्ते टूटने के कगार पर क्यों पहुंच जाते हैं? 

और काम के जैसे ही रिश्ते को बनाये रखने के लिए मेहनत करना पड़ता है। 
कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जिन्हे शायद जैसे है वैसे ही छोड़ दिया जाये तो ठीक होता है। कभी कभी प्यार में कोई इतना पड़ जाता है की अपने पार्टनर की गलती भी नज़र नहीं आती है। यह स्तिथि दोनों तरफ से हौ सकती है। चाहे उस पार्टनर के चलते परिवार को अपमान सहना पड़ता है। ये अपमान करने की प्रक्रिया है वो(पति या पत्नी) किसी परिवार को कण्ट्रोल करने की प्रक्रिया के कारण होता है। जब कोई लड़की शादी करके किसी के घर जाती है। तब उसका आदत अपने घर में काम करने जैसे होता है।  जहाँ रहती थी उसके अनुसार होती है। पत्नी को ससुराल के माहौल में संतुलन बैठाना पति की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण हो जाती है।  वैसे में देखा जाये तो संतुलन बनाने की जिम्मेदारी दोनों परिवार अर्थात पति और पत्नी दोनों के परिवार की भी होती है। 

Wednesday 29 May 2019

मोदी

प्रधानमंत्री मोदी को चुनाव जीतने की इतनी तलब क्यों है उनको देख कर लगता है चुनाव जित के दम लेंगे।  उनसे जो आधारभूत काम है उनसे हुआ ही नहीं। बीच हिन्दू मुस्लिम मंदिर ये सब मुद्दा जोर पकड़ने लगा था। लेकिन जब से आतंकवादी हमला हुआ है और उसके बाद हमारे सेना  द्वारा जो सर्जिकल हमला  हुआ है। उस हमला को अपने पार्टी के एजेंडे में शामिल कर ऐसे पोस्टर लगवाए जा रहे हैं जैसे लगता हो ये खुद मोदी का ही फैसला था सिर्फ उन्हीं का पहल पर किया गया हमला था।
ये और ही बात है की जिस समय आतंकवादी हमला हुआ था तो बीजेपी के नेताओं ने घटना की जानकारी रहते हुए भी अपने रैली और सांस्कृतिक कर्यक्रम स्थगित नहीं किया था।  यदि उनमें इतनी देशभक्ति थी फिर उन्होंने हमले की जानकारी मिलने के बाद भी अपने कर्यक्रम स्थगित क्यों नहीं किये। मनोज तिवारी के बारे में ये भी न्यूज़ आयी की वे सारी रात नाचते गाते रहे।  उन्होंने कार्यक्रम को स्थगित नहीं किया। यही है इनकी देशभक्ति ?
सर्जिकल स्ट्राइक होने बाद प्रधानमंत्री ने कुछ राजनैतिक सम्मेलन को सबोधित किया जबकि वो उनको रोक सकते थे। 
पाकिस्तानी हमलों को नाकाम करने के दौरान पाकिस्तानी लड़ाकू बिमान को पीछा करते हुए पाकिस्तानी सिमा पर हमारे सैनिक गिरे तो उस बिषय में प्रधानमंत्री ने कुछ नहीं कहा लेकिन जैसे ही अन्तराष्ट्र्य बिरादरी द्वारा पाकिस्तान पैर दवाब बनाये जाने पर जब हरे बायु सेना पायलट को चोर दिया गया तो वो अपने इसको श्रेय लेते हुआ उस घटना को पायलट प्रोजेक्ट का नाम देते हैं, वह भी सार्वजनिक रूप से ये चीज़ वे तुरंत भी कह सकते थे वह भी कड़े सबो में की पाकिस्तान जल्द से जल्द हरे सैनिक को लौटाए।  नहीं तोह अंजाम बहुत ही बुरा होगा। \
इन साड़ी घटनाओं से पहले जब आतंकवादी हमला हुआ था तोह कॉन्वॉय मूवमेंट को लेकर पहले ही खुपिया बिभागो द्वारा दिया गया सुचना को क्यों नज़रअंदाज़ किया गया ये समझ से परे है जबकि जम्मू कश्मीर में सेना युद्ध की इस्तिथि में रहती है 
हमरे खुफिया तंत्र भी इतने कमजोर हो गए की  कश्मीर में ३०० किलो आर डी एक्स लाया जाता है उनको कानो कान खबर ही नहीं होती है.इतनी कमजोर ख़ुफिअ तंत्र कैसे हो गयी. जबकि रगरीबो के लिए लड़नेवालों की खिलाफ तो तुरंत सबूत ढूढ़ लेती है। फिर उस आतंकी के बारे में कैसे पता नहीं चला की वो इस तरह का हमला करने वाला था।  
हमारे सैनिक सिमा पे तोह जंग लड़ ही रहे हैं लेकिन वे  अपने देश में भी लड़ रहे हैं क्योंकि बहुत सारे सैनिक अपने पेंशन को लेकर लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन कोई इनकी सुध नहीं ले रहा है यदि बीजेपी सर्कार को अपने सैनिको के परती सम्मान का इतना भाव होता तोह वे अपने पांच  कार्यकाल के दौरान ऐसे बहुत से कर्यक्रम चले जिससे सैनिकों को आंदोलन नहीं करना पढता। 
अब ये देखना ही हमरे देश  कितने बेवकूफ है की एक चरे दो देख कर वोट करते हैं की अपने लोकल नेता को वोट करेंगे जो उनके गाओं मोहाली की  धयान देता हो.वैसे भी ये सर्कार कुछ मामलों में तोह अच्छा कर ही रही है लेकिन जो आधारभूत जरूरतें हैं उनके लिए कुछ नहीं कर रही है।  जैसे नौकरी का सवाल हो चाहे भ्रस्टाचार का  बात हो। जब नोटेबंदी किया गया था तब अस्वाशन दिया गया था की की भ्रस्टाचार को जड़ से मिटा दिया जायेगा और नोटेबंदी उसी दिशा में एक मज़बूत कदम है लेकिन ये तोह फुस्कू बेम निकला।
लेकिन अब जब कोई इसके खिलाफ कोई आवाज़ उठता है तो देशद्रोही का नाम दे दिया जाता है. यानी आप अपने सरकार जो हमारे द्वारा चुनी हुयी है उसके कोई सवाल भी नहीं पूछ सकते हैं क्योंकि इससे हम देशद्रोही हो जायेंगे.