Tuesday 9 May 2017

एन एच का हाल

भारत में लोग बहुत ही धीरे करते हैं। इसका उदहारण है एन एच जो की टाटा होते हुए बहरागोड़ा से कोलकाता की ओर जाती है। उसका निर्माण जिस तेजी से हो रहा है इससे न जाने कितने सालों में बनेगा। इसका निर्माण मशीनों से हो रहा है इसमें स्थानीय लोगों की भागीदारी बहुत कम है। मशीनों पर इतनी निर्भरता के बावजूद काम का रफ़्तार बहुत ही धीमी है। इस सड़क का निर्माण कार्य जिस व्यक्ति या कंपनी को दिया गया है। वो या बहुत ही आलसी होंगे या कोई घोटाला कर रहे हैं। क्योंकि जमीन का अधिग्रहण किया जा चूका है। ना  खुद काम करेंगी और ना दूसरे को करने देंगी।
बहुत बार माननीय उच्च न्यायालय ने बहुत बार स्वतः संज्ञान लेकर पटकार भी लगायी है क्योंकि इसका काम बहुत ही धीमे है। इसके बारे में राज्य सरकार भी दायित्व लेती है। लेकिन न ही राज्य सरकार और ना ही केंद्र सरकार इस स्तिथि से निपटने का कोई पहल कर रही है। राज्य सरकार यूँ तो राज्य की विकास का दावा करती है लेकिन एक सड़क जो रोज़मर्रा जीवन के लिए जरूरी है उसके निर्माण में कोई खास दिलचस्पी नहीं ले रही है।
जब राज्य सरकार राज्य के विकास के लिए झूठ मुठ का ढिंढोरा पीठ रही थी उसमें से कितनी कंपनी ने झारखडं में निवेश किया। कितनी स्थापित हुयी। हाथी को उड़ाने से अच्छा वही प्रोत्साहन स्थानीय लोगों को देती शायद तो आज झारखण्ड के स्तर में बढ़ोतरी होती।